सरकार की नजर में हिमाचल के सेब बागवान गरीब हैं। उनकी आमदनी प्रति बीघा 6000 रुपये से अधिक नहीं आंकी जा रही है। इसका पता खुद कई संपन्न सेब बागवानों को उस वक्त लगता है, जब वे किसी काम के लिए आय प्रमाणपत्र लेने पटवारी के पास जाते हैं। वे चाहकर भी उनसे ज्यादा आय नहीं लिखवा पाते। उन्हें कानून ही ऐसा होने की दलील दी जाती है।
दूसरी ओर कई बागवान जो लाखों की आईटीआर भरते हैं, उनकी भी यही आय दर्शाई जाती है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश में कई डीसी ने राजस्व नियमों को अपडेट ही नहीं किया है। दूसरी ओर बैंक किसानों को प्रति बीघा 90 हजार रुपये तक का फ सली कर्ज देने को आसानी से तैयार हो जाते हैं। हिमाचल का राजस्व महकमा खुद को अपडेट नहीं कर रहा है। एक तो यह विभाग जमीना की समयबद्ध गिरदावरी नहीं करवा पा रहा है।
इसके लिए पटवारियों की कमी का रोना रोया जाता है। ऐसे में बाखल अव्वल हो चुकी जमीन को भी राजस्व रिकार्ड में बंजर दिखाया जाता है। बाखल अव्वल जमीन पर सालाना आय छह हजार रुपये से ज्यादा नहीं लिखी जा सकती। अगर पटवारी ऐसा करता है तो इसे कानूनन गलत माना जाता है। इसका कारण यह है कि राजस्व नियमों को अपडेट नहीं किया जा रहा है। सालों से यही रेट चल रहे हैं।
नियमों में बागवानी के बजाय कृषि का ही जिक्र
कई कृषक ऐसे हैं, जिनकी आमदनी प्रति बीघा छह हजार रुपये से भी कम रहती है। ऐसे किसानों को कई सरकारी योजनाओें का लाभ देने के लिए ही यह सीमा तय है। चूंकि नियमों में बागवानी के बजाय कृषि का ही जिक्र है। कृषि फ सलों के मानकों से ही आय तय होती है। - रामलाल मारकंडा, कृषि मंत्री, हिमाचल प्रदेश
इस मसले पर होगी चर्चा
डीसी ने रेट क्यों संशोधित नहीं किए हैं। इसके बारे में पता किया जा रहा है। इस मसले पर चर्चा की जाएगी। - अनिल कुमार खाची, मुख्य सचिव, हिमाचल सरकार